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देवता: इळ: ऋषि: मेधातिथिः काण्वः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

अग्ने॑ सु॒खत॑मे॒ रथे॑ दे॒वाँ ई॑ळि॒त आ व॑ह। असि॒ होता॒ मनु॑र्हितः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne sukhatame rathe devām̐ īḻita ā vaha | asi hotā manurhitaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। सु॒खऽत॑मे। रथे॑। दे॒वान्। इ॒ळि॒तः। आ। व॒ह॒। असि॑। होता॑। मनुः॑ऽहितः॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:13» मन्त्र:4 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:24» मन्त्र:4 | मण्डल:1» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

उक्त अग्नि इस प्रकार उपकार में लिया हुआ किसका हेतु होता है, सो उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अग्ने) भौतिक अग्नि (मनुः) विद्वान् लोग जिसको मानते हैं तथा (होता) सब सुखों का देने और (ईडितः) मनुष्यों को स्तुति करने योग्य (असि) है, वह (सुखतमे) अत्यन्त सुख देने तथा (रथे) गमन और विहार करानेवाले विमान आदि सवारियों में (हितः) स्थापित किया हुआ (देवान्) दिव्य भोगों को (आवह) अच्छे प्रकार देशान्तर में प्राप्त कराता है॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को बहुत कलाओं से संयुक्त पृथिवी जल और अन्तरिक्ष में गमन का हेतु तथा अग्नि वा जल आदि पदार्थों से संयुक्त तीन प्रकार का रथ कल्याणकारक तथा अत्यन्त सुख देनेवाला होकर बहुत उत्तम-उत्तम कार्य्यों की सिद्धि को प्राप्त करानेवाला होता है॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

स एवमुपकृतः किंहेतुको भवतीत्युपदिश्यते।

अन्वय:

मनुष्यैर्योऽग्निर्मनुर्होतेडितोऽस्ति स सुखतमे रथे हितः स्थापितः सन् देवानावह समन्ताद्वहति देशान्तरं प्रापयति॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) भौतिकोऽयमग्निः (सुखतमे) अतिशयितानि सुखानि यस्मिन् (रथे) गमनहेतौ रमणसाधने विमानादौ (देवान्) विदुषो भोगान्वा (ईडितः) मनुष्यैरध्येषितोऽधिष्ठितः (आ) समन्तात् (वह) वहति प्रापयति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (असि) अस्ति (होता) सुखदाता (मनुः) विद्वद्भिः क्रियासिध्यर्थं यो मन्यते (हितः) धृतः सन् हितकारी॥४॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्बहुकलासमन्वितो भूजलान्तरिक्षगमनहेतुरग्निर्जलादिना सह सम्प्रयोजितस्त्रिविधे रथे हितकारी सुखतमो भूत्वा बहुकार्य्यसिद्धिप्रापको भवतीति बोध्यम्॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - बऱ्याच कलांनी युक्त, पृथ्वी, जल व अंतरिक्षात गमन करण्याचा हेतू तसेच अग्नी किंवा जल इत्यादी पदार्थांनी संयुक्त तीन प्रकारचा रथ कल्याणकारक व अत्यंत सुखदायक असून, माणसांना पुष्कळ उत्तम कार्याची सिद्धी प्राप्त करून देणारा असतो. ॥ ४ ॥